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खूब लड़ी मर्दानी ... ... .



सबसे अधिक प्रसिद्धि इस कविता के माध्यम से मिली!

आज इसी कविता की 
निम्नांकित दो पंक्तियों पर 
चर्चा करने का मन हो रहा है -

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।। 

क्या आपको इन पंक्तियों में कोई त्रुटि दिखाई दे रही है?

समयचक्र  – (17 नवंबर 2009 को 8:15 pm बजे)  

कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान की रचना पढ़कर बचपना याद आ गया .इसीलिए त्रुटी की बात नहीं करूँगा. आभार

निर्मला कपिला  – (17 नवंबर 2009 को 8:20 pm बजे)  

खूब लडी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी { यहाँ वह नहीं वो शब्द आना चाहिये था

Mithilesh dubey  – (17 नवंबर 2009 को 8:38 pm बजे)  

इतनी लाजवाब रचना में गलतियाँ कोन देखे, बेहद उम्दा रचना है।

Chandan Kumar Jha  – (17 नवंबर 2009 को 10:51 pm बजे)  
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Chandan Kumar Jha  – (17 नवंबर 2009 को 10:58 pm बजे)  

मुझे लगता है यहाँ मर्दानी शब्द में कुछ त्रुटि है ।

राज भाटिय़ा  – (18 नवंबर 2009 को 1:22 am बजे)  

अगर गलती हुयी भी तोभी कोई बात नही, खूब लडी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.... यह कविता हमारे दिमाग मै नही बल्कि हमारे दिलो पर लिखी है, मान सम्मान से.

धन्यवाद

gazalkbahane  – (18 नवंबर 2009 को 8:15 am बजे)  

इन अजर अमर ओजस्वी पंक्तियों में गलती ढ़ूंढना कृतघनता होगी और मैं क्रुत्घन नहीं हूं

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