ग्रह और गृह : समाधान
♥ सोमवार, ३१ जनवरी २०११ को "हिंदी का शृंगार" पर यह पोस्ट प्रकाशित हुई थी ♥
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नवगीत की पाठशाला पर पढ़िए मेरे ताज़ा नवगीत : बौराए हैं बाज फिरंगी और कर पाएँगे नहीं नाज़
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सप्तरंगी प्रेम पर पढ़िए मेरे ताज़ा नवगीत : मेरा हृदय अलंकृत और ओ, मेरे मनमीत!"नवगीत की पाठशाला" में पढ़िए मेरे नवगीत –
“सृजनगाथा में प्रकाशित रावेंद्रकुमार रवि की लघुकथाएँ –
१. भविष्य दर्शन
२. शेर और सियार
३. तोते ४. लेकिन इस बार
५. आदर्श
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वास्तव में यह खेल-खेल में पढ़ने का अच्छा तरीक़ा है और अब इसको पढ़कर लगता है कि अब ब्लॉग लिखना पाठ्यक्रम में शामिल करना होगा। वास्तव में शिक्षा और अब इसके लिए ज़रूरी नहीं परीक्षा।
हिँदी के शुद्ध प्रयोग की दिशा मेँ आपका अवदान स्तुत्य है । हिँदी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हिँदीवालोँ को ही उसका स्पष्ट बोध नहीँ । जैसे , कम ही लोग परिचित हैँ कि बारात और इतवार शब्द उर्दू के नहीँ , हिँदी के तद्भव रूप हैँ । इनका मूल तत्सम [ वरयात्रा और आदित्यवार ] मेँ निहित है । आपको हार्दिक साधुवाद । ...करे तो कोई कमाल पैदा ।
अजी इअतने दिनो के बाद नही जल्दी जल्दी पुछा करे, मै डॉ. नागेश पांडेय "संजय" जी से सहमत हुं, धन्यवाद
ठीक है, भाटिया जी!
अब जल्दी-जल्दी पूछा करूँगा!
हिन्दी के ज्ञानार्जन और प्रचार-प्रसार में यह ब्लॉग बहुत महत्वपूर्ण काम कर रहा है!