नवसुर में कोयल गाता है
ये हैं सबकी जानी-पहचानी कविता की चार पंक्तियाँ -
काली-काली कू-कू करती,
जो है डाली-डाली फिरती!
... ... ... ...
... ... ... ...
जो पंचम सुर में है गाती,
वह ही है कोयल कहलाती!
और ये हैं चार पंक्तियाँ एक अनजानी कविता की -
जब बसंत का मौसम आकर,
इस धरती पर सज जाता है!
कुहुक-कुहुककर, कुहुक-कुहुककर,
नवसुर में कोयल गाता है!
अब समस्या यह है कि -
कोयल गाता है या कोयल गाती है?
बसंत का मौसम होता ही है मनमोहक ।
समस्या है ......... वैसे साहित्य में तो कोयल गाती ही ........ असल में शायद दोनो ही गाते हों .......
पंक्तियाँ तो दोनों भली लगी.
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कोयल कू - कू गाती है.
कभी
कोयलिया कू - कू गाती है.
नर कोयल को गाने का अधिकार है तो वह तो गायेगा ही भले वह बे सुरा हो .. कू-कू न गाए कुहुक-कुहुक ही गाए!!
नई कोंपल में से कोकिल, कभी किलकारेगा सानंद,
एक क्षण बैठ हमारे पास, पिला दोगे मदिरा मकरंद!
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जयशंकर प्रसाद
बसंत की प्रतीक्षा (झरना) से
नर कोयल और मादा दोनों ही गाती हैं ... कई जानवरों और पक्षियों के नामों से नर या मादा का बोध नही होता जैसे हाथी, कौवा, इत्यादि इस लिए दोनों ही रूपों मे प्रयोग किया जा सकता है ,... चूँकि गाना स्त्रियोचित गुण माना जाता है इस लिए कोयल के साथ गाती शब्द का प्रयोग अधिक किया जाता है.
काली-काली कू-कू करती,
जो है डाली-डाली फिरती!
कुछ अपनी हीं धुन में ऐंठी
छिपी हरे पत्तों में बैठी
जो पंचम सुर में गाती है
वह हीं कोयल कहलाती है.
जब जाड़ा कम हो जाता है
सूरज थोड़ा गरमाता है
तब होता है समा निराला
जी को बहुत लुभाने वाला
हरे पेड़ सब हो जाते हैं
नये नये पत्ते पाते हैं
कितने हीं फल औ फलियों से
नई नई कोपल कलियों से
भली भांति वे लद जाते हैं
बड़े मनोहर दिखलाते हैं
रंग रंग के प्यारे प्यारे
फूल फूल जाते हैं सारे
बसी हवा बहने लगती है
दिशा सब महकने लगती है
तब यह मतवाली होकर
कूक कूक डाली डाली पर
अजब समा दिखला देती है
सबका मन अपना लेती है
लडके जब अपना मुँह खोलो
तुम भी मीठी बोली बोलो
इससे कितने सुख पाओगे
सबके प्यारे बन जाओगे.
काली-काली कू-कू करती,
जो है डाली-डाली फिरती!
कुछ अपनी हीं धुन में ऐंठी
छिपी हरे पत्तों में बैठी
जो पंचम सुर में गाती है
वह हीं कोयल कहलाती है.
जब जाड़ा कम हो जाता है
सूरज थोड़ा गरमाता है
तब होता है समा निराला
जी को बहुत लुभाने वाला
हरे पेड़ सब हो जाते हैं
नये नये पत्ते पाते हैं
कितने हीं फल औ फलियों से
नई नई कोपल कलियों से
भली भांति वे लद जाते हैं
बड़े मनोहर दिखलाते हैं
रंग रंग के प्यारे प्यारे
फूल फूल जाते हैं सारे
बसी हवा बहने लगती है
दिशा सब महकने लगती है
तब यह मतवाली होकर
कूक कूक डाली डाली पर
अजब समा दिखला देती है
सबका मन अपना लेती है
लडके जब अपना मुँह खोलो
तुम भी मीठी बोली बोलो
इससे कितने सुख पाओगे
सबके प्यारे बन जाओगे.